आलोक कौशिक - बेगूसराय (बिहार)
पास और दूर - कविता - आलोक कौशिक
शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2020
वो जब मेरे पास थी
थी मेरी ज़िंदगी रुकी हुई
अब वो मुझसे दूर है
ज़िंदगी फिर से चल पड़ी
जब था उसके पास मैं
मैं नहीं था कहीं भी मुझमें
अब केवल मैं ही मैं हूँ
वो कहीं नहीं है मुझमें
जब थी मेरे पास वो
था उसे खोने का डर
खोकर उसको हो गया
अब हर डर से बेख़बर
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