संदेश
कोई बात दबी हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
तेरे नूरानी बदन पे कसक कोई सजी हैं, तुझसे मिलकर कह दूँ होठों में कोई बात दबी हैं। मिन्नतें तमाम अज़ीज़ों की मेरे संग काफ़िर गुजरी हैं,…
शांति रंग - कविता - आशीष कुमार पाण्डेय
तिरंगे से शांति रंग को, चुराने वाले है कहाँ? हरियाली ने दम तोडा, फिर क्रांति ज्वाला है कहाँ? छोटी - छोटी बातो पर जो, सडको पर आ जाते है…
अपने अंतर्मन को जगाओ - कविता - श्रवण कुमार पंडित
नारी अस्मिता वापस लाओ, तब सच्चा मानव कहलाओ। कब-तक आँखे बंद रखेंगे - चलो अब तो अवाज उठाओ। अपने अंतर्मन को जगाओ।। जगत जननी जग में ल…
मर्यादा - ग़ज़ल - सलिल सरोज
औरत को तमाशा बनाए रखिए और फिर जुबाँ को दबाए रखिए राम को पूजा कीजिए हर घर में और सीताओं को सताए रखिए जो अधिकार की बातें करने लगें त…
प्रेमालाप - गीत - संजय राजभर "समित"
खिली हुई फुलवारी में ज्यों, भँवरें मगन गूँजन करें । जरा चँहक मैं लिखता जाऊँ, त्यों प्रेम गीत सृजन करें । सुवासित मलय स्वच्छ चाँदनी, शा…
आखिर लाचार क्यों है बेटी - कविता - प्रमिला पांचाल
कभी होता हैं उस पर भ्रूण हत्या का वार। कभी होती हैं अंधेरी गलियों में शिकार।। इस पर ही ये जुल्म शीतम की कैसी रूत आई। आखिर क्यों बेटी…
बेटियों से जहान है - कविता - हरदीप बौद्ध
हम सबकी ऊँची शान हैं बेटी, दुनिया में सबसे महान हैं बेटी। बेटी ही मन का मीत है जीवन का सुंदर गीत है। प्रेम करो सब बेटियों से ये भी तो …
हैवान - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"
इन भोली सूरत के पिछे, है हैवान बसा क्या है? तुझको पता। भोली सूरत काले नैना, है चाल मस्त मौला दिन को है बेवाक वो घूमें, जैसे कोई परिंदा…
कुछ पुरानी यादें - गीत - प्रवीन "पथिक"
तेरी आँखो में चाहत के, चिन्ह वो अपने देखें हैं। अपनी हर खुशी में, मुस्कान तुम्हारी पाई है। गमों की परछाई में, प्यार तुम्हारा छलका…
मन - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मन से उत्पन्न हुये कई विकार मन से बनी कितनी ही बातें, मन ही देता है अभिव्यक्ति जिसने दी कल्पना की सौगातें मन के लड्डू खाते ही कर्त्तव…
एक सवाल - कविता - राहुल जाटू
आज कल एक सवाल अक्सर, मेरे दिमाग मे खटकता रहता हैं। क्या ये सही हैं जाटू जो, तू मोहब्बत के लिए गिड़गिड़ाता रहता हैं। क्या उसे तेरे गुस्से…
मुक्त ही करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आखिर कब तक हम बेटियाँ यूँ ही लुटती पिटती मरती रहेंगी, कब तक हमारी खुशियां हमारा सुखचैन यूँ ही छिनता रहेगा। कभी गर्भ में, कभी दहेज …
ऐ! मातृ शक्ति अब जाग जाग - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! मातृशक्ति अब जाग जाग। ऐ! शक्तिपुंज अब जाग जाग। रणचंडी बन तू स्वयं आज। मत बन निरीह नारी समाज। उठ हो सशक्त भय रहा भाग। अबला का चोला …
दस्तक - कविता - दीपक राही
सवाल देते है दस्तक, ज़हन में मेरे, देश के विकास के, बढ़ते हुए भ्रष्टाचार पे, जातिगत उत्पीड़न के, बढ़ते हुए जुल्मात पे, जेलों में जकड़…
कैसे समझते हैं खुद को पुरुष - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
खेत में काम करती हुई अकेली लड़की एकांत में पड़ी लड़की हो या शौच को निकली लड़की,या फिर बाग बगीचे में दिखनेवाली लड़की को देखकर कैसे क…
भ्रूण हत्या क्यों, कबतक? - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
कन्या भ्रूण हत्या क्यों कबतक, हत्या उसकी जो जना धरा, अस्तित्व मिटाने चला कृतघ्न, निज कोख उसी का मौत सबब, क्या सोच बदलेगी मनुज कलियुग, …
दिल से डरते हैं - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
जिनको खिलते चमन अखरते हैं वो मुहब्बत की बात करते है इश्क़ पत्थर कभी नहीं करते ये तो फूलों के दिल से डरते हैं दिल जलाती है रोशनी…
मैं तुम्हारी जमीन हूँ - कविता - भागचन्द मीणा
मैं तुम्हारी जमीन हूँ तू चाहे मेरा अनाज खा और जीवन बसर कर तू चाहे तो क्षणभंगुर दौलत कमा मुझे बेंच कर तू चाहे इज्जत कर मातृभूमि समझ कर …
बयानबाजी का दौर - हास्य व्यंग्य (आलेख) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
बयान बाजियों का दौर भी अपना एक लॉलीपॉप लेकर आता है, जिसमें घोर तपस्वी अपनी-अपनी गुफाओं से निकलकर आ जाते हैं अपने चमत्कृत कर्म से भावों…
जनाजा उठ गया होता - मुक्तक - राहुल सिंह "शाहावादी"
जनाजा उठ गया होता, अगर देखा न होता। नजर के तीर का मारा, पङा रोता न होता। तुम्हारी इन अदाओं ने, शरा…
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