मर्यादा - ग़ज़ल - सलिल सरोज

औरत को  तमाशा बनाए रखिए 
और फिर जुबाँ को दबाए रखिए

राम को पूजा कीजिए हर घर में 
और सीताओं को सताए रखिए

जो अधिकार की बातें करने लगें 
तो तमाम उलझने गिनाए रखिए

खूँ कीजिए इनका जब दिल चाहे
और टीका सिर पर लगाए रखिए

न कोई दलील न ही कोई मुक़दमा
हर बाज़ी इस  तरह बिछाए रखिए

औरत ही औरत के लिए ना  बोलें
इसी  तरह  इनको सिखाए रखिए

बराबर में आने की जुर्रत हुई कैसे
इन्हें लूट कर मर्यादा बचाए रखिए

सलिल सरोज - मुखर्जी नगर (नई दिल्ली)

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