कुछ पुरानी यादें - गीत - प्रवीन "पथिक"

तेरी आँखो में चाहत के,
चिन्ह वो अपने देखें हैं।
अपनी  हर  खुशी  में,
मुस्कान तुम्हारी पाई है।
गमों  की परछाई  में,
प्यार तुम्हारा छलका है।
ख्वाबों की शबनम ने,
चाहत की प्यास बुझाई है।

जुदाई  की  नुकीली  लहरें  चुभती  हैं,
स्मृतियों की आँखो में कोर समाती है।
पाने  की  हृदय  में आभा खिलती  है,
वह यादें बनकर मचल_२ बहकाती है।

मस्तिष्क में छा जाती मीठी_२ सी यादें,
गुजरी पल पल की बातें हमें सताती है।
आँखो  में  तेरा बिम्ब उभरता आता  है,
हृदय सिंधु में सौ सौ तरंग  जगाती है।

वह  थे  प्यारे  पल  निगाहें,
एक दूजे को ढूँढा करती थी।
कल्पना  के सागर  में थे डूबे,
आँखो  में नींद  न  होती थी।

उस क्षण  प्रेमविपिन अपना,
खिला खिला  सा रहता था।
जीवन  में फूलों की  खुशबू,
उन्मत्त हो महका करती थी।

बस, खुशबू वही पाने की,
अभिलाषा  बनी  हुई  है।
आँखो  में  आकर आँसू ,
इस आस में रुकी हुई है।

कि, जीवन के दुर्धर पथ पर,
खोए  हुए  भी मिल जाते  हैं।
जीवन  है  तो नक़मी मिलन  होगा  ही,
कट जाती ग़म की काली स्याह रातें हैं।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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