अपने अंतर्मन को जगाओ - कविता - श्रवण कुमार पंडित

नारी अस्मिता वापस लाओ, 
तब सच्चा मानव कहलाओ। 
कब-तक आँखे बंद रखेंगे -
चलो अब तो अवाज उठाओ। 
अपने अंतर्मन को जगाओ।।  

जगत जननी जग में लाओ, 
फिर उसे अधिकार दिलाओ।
भेद-भाव करने ना दो उनसे -
चलो उन्हें भी शिक्षा दिलाओ। 
अपने अंतर्मन को जगाओ।।  

बँधी बेड़ी अब तोड़ हटाओ, 
स्वतंत्र उसे चलना सिखाओ।  
बने जो भी इसमें रूकावट-
मिलकर चोट उनको लगाओ।
अपने अंतर्मन को जगाओ।।  

समानता का वो हक पाये, 
समाज में न कोई टोक पाये। 
सशक्त खुद को इतना बना ले -
कि दरिंदो को वो ठोक पाये।  
तू दुर्गा चंडी खुद को बना लो। 
अपने अंतर्मन को जगा लो।। 

श्रवण कुमार पंडित - टेढ़ागाछ, किशनगंज (बिहार)

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