नारी अस्मिता वापस लाओ,
तब सच्चा मानव कहलाओ।
कब-तक आँखे बंद रखेंगे -
चलो अब तो अवाज उठाओ।
अपने अंतर्मन को जगाओ।।
जगत जननी जग में लाओ,
फिर उसे अधिकार दिलाओ।
भेद-भाव करने ना दो उनसे -
चलो उन्हें भी शिक्षा दिलाओ।
अपने अंतर्मन को जगाओ।।
बँधी बेड़ी अब तोड़ हटाओ,
स्वतंत्र उसे चलना सिखाओ।
बने जो भी इसमें रूकावट-
मिलकर चोट उनको लगाओ।
अपने अंतर्मन को जगाओ।।
समानता का वो हक पाये,
समाज में न कोई टोक पाये।
सशक्त खुद को इतना बना ले -
कि दरिंदो को वो ठोक पाये।
तू दुर्गा चंडी खुद को बना लो।
अपने अंतर्मन को जगा लो।।
श्रवण कुमार पंडित - टेढ़ागाछ, किशनगंज (बिहार)