प्रेमालाप - गीत - संजय राजभर "समित"

खिली हुई फुलवारी में ज्यों,
भँवरें मगन गूँजन करें ।
जरा चँहक मैं लिखता जाऊँ,
त्यों प्रेम गीत सृजन करें ।

सुवासित मलय स्वच्छ चाँदनी,
शांत पहर छिटकें तारें ।
कोयल सी है तेरी वाणी, 
कर्ण ह्रदय को है न्यारे । 
तुम मुस्कराओ मैं निहारूँ,
खुलकर चलो जीवन करें।
जरा चँहक मैं लिखता जाऊँ,
त्यों प्रेम गीत सृजन करें ।

जीवन के पथ है कँकरीलें,
सँभल-सँभल के चलना है ।
प्यार मुहब्बत ही मानव के, 
सुखद सलोनी पलना है । 
सदा झरने सी बहती रहो 
नित नेह का सींचन करें । 
जरा चँहक मैं लिखता जाऊँ,
त्यों प्रेम गीत सृजन करें ।

जहाँ प्रेम है वहीं ईश हैं,
चल उसकी अनुभूति करें ।
बुलबुला सा अस्तित्व अपना,
हँसकर कर नवनीत करें ।
क्षणिक देह में रमता जाऊँ,
आ तुझे आलिंगन करें ।
जरा चँहक मैं लिखता जाऊँ,
त्यों प्रेम गीत सृजन करें ।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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