मन - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

मन से उत्पन्न हुये
कई विकार
मन से बनी कितनी ही बातें,
मन ही 
देता है अभिव्यक्ति
जिसने दी कल्पना की सौगातें
मन के लड्डू खाते ही
कर्त्तव्यविहीन रह जाते है।
मन के कारण
राजा रंक हुआ करता है,
मन के कारण
रंक राजा बन जाता है।
मन ही तो है
जो दिखलाता है
दुनिया भर के खेल,
मन ही तो कराता है
सुख से दुख से मेल।
मन की शक्ति बढ़ जाने से
सारे रास्ते हो जाते है अवरुद्ध,
इसलिए मन को 
रखो हमेशा शुद्ध।
सचमुच में चंचल है
इस के आज्ञाकारी न बनना,
संत समाज के कथनों
का अनुकरण करना।
मन ही दिलाता है
समाज मे सम्मान और
मन ही कराता है अपमान।
जिसने मन की बात मानी
तो होगा बर्बाद
काल नही तो आज।
चलायमान मन है
मन की बात न मानियो
कह गए वृद्ध समाज।
झूठ ही लेना
झूठ चवेना
मन से सारी बाते करते
मन ही आदमी को
धूल चटवावे
और हीन भावना करवाते।
आत्मा की आवाज को
सुनने का सदैव
करना प्रयाश, 
सच मानिए
समाज मे सब होंगे
आपके खास।

रमेश वाजपेई - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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