भ्रूण हत्या क्यों, कबतक? - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

कन्या भ्रूण हत्या क्यों कबतक,
हत्या उसकी जो जना धरा,
अस्तित्व मिटाने चला कृतघ्न,
निज कोख उसी का मौत सबब,
क्या सोच बदलेगी मनुज कलियुग,
क्या  रूके अन्त कन्या भ्रूण का,
ममता करुणा स्नेहांचल  प्रतीक ,
बन मातु बहन वधू  कन्या नित।
नित त्याग समर्पण स्नेहिल सरिता,
पाकर कन्या पाकर सुख खुशियाँ,
कोई मातु कहे, कोई निज भार्या,
कोई गृहलक्ष्मी,  कोई  प्यारी बहना,
आह्लाद हृदय किसलय  कोमलतर,
अरुणाभ जगत बन  क्षितिज तलक।
ललना कौलिक बन  सुता  प्रिया,
स्वाभिमान पिता कुल गेह धिया,
कन्यादान  मुदित  बन परकीया,
सब तजी स्वत्व  परगेह  सुता,
अर्पित तन मन धन अनजान मनुज,
मुस्कान खुशी  जीवन  प्रियतम,
आनन्दप्रदा  पति स्वजन सन्तति,
बन संघर्ष कँटिल पथ  यायावर,
सुख, शान्ति, प्रीति विश्वास बनी,
पति पूत  मान   सम्मान  खड़ी,
लगे खरोंच तनिक सुत आहत माँ,
पति ढाल बनी शत्रुंजय ललना।
बन आन बान ईमान पथिकज़
निज मातु पिता अरु पति कौलिक,
जो महाशक्ति नवरूप सुता,
शिक्षा दीक्षा पद  हिमशिखर समा,
दक्षा सफला कुशला शासन,
बन गुरुज्ञान शान विज्ञान सजग,
नित प्रगति पथी उन्नायक जग,
रक्षक  निर्माणक  राष्ट्र  निहित,
क्यों फिर अवसादित कन्या आजतलक।
बस बनी काम सुख वस्तु जगत,
प्रजनन दायित्व निर्वाहे  क्यों,
क्यों सहे वेदना  दर्द  विलख,
कबतक अबला भयभीत बने,
कलुषित भाव मनुज जाता कन्या,
निज   कोख़ मातु भ्रूण स्वयं मरे।
अफ़सोस सोच मद नर जाति जगत,
नित स्वार्थ परत शैतान मनुज ,
तुला स्वयं अवलम्ब अम्ब हनन,
नवसृष्टि विधायक  भ्रूण हत्या ,
लानत चिन्तन  नरपशु  जगत।
नवक्रान्ति पुनः रक्षा कन्या ,
स्वाभिमान मातु कन्या मान्या,
कुलनाशक जन अपराध महत,
सजा ए मौत मिले हर भ्रूण नाशक,
अनिवार्य आज जन जागृति जन,
हो नारी सशक्त सबला ए जगत,
पुरुषार्थ  आज  नारी  सम्बल,
घर बाहर कन्या  उत्थान शिखर,
हे मातु सुता बहन बहुरूप प्रिया,
श्रद्धा लज्जा  पूज्या नर जीवन 
नवप्रीति सुधा नवनीत  जगत।
हम   साथ  खड़े  नारी रक्षण ,
कन्या भ्रूण हत्या कृत्य जघन्य,
स्वर्णिम भविष्य उज्ज्वल जीवन,
हे जननी,कन्या नित बहन नमन।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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