मैं तुम्हारी जमीन हूँ - कविता - भागचन्द मीणा

मैं तुम्हारी जमीन हूँ

तू चाहे मेरा अनाज खा और जीवन बसर कर
तू चाहे तो क्षणभंगुर दौलत कमा मुझे बेंच कर

तू चाहे इज्जत कर मातृभूमि समझ कर
तू चाहे दफ्न हो कर सुकून से आराम कर

मैं तुम्हारी जमीन हूँ

मुझे तबाह कर दे खरपतवार किटनाशक छिड़क कर
या मुझे बेहतर बना दे जैविक खाद देकर

में तेरी मां जैसी हूं मुझे अनमोल समझा कर
मुझसे अपने हर दुःख दर्दों को सांझा कर

मैं तुम्हारी जमीन हूँ

में सबकुछ दें सकतीं हूं तुम्हें तु तय तो कर
बस मुझसे कुछ लेने से पहले मेरे स्वास्थ्य का ख्याल कर

हम अपने हैं मुझे अपनों सा आबाद कर
ग़ैर फर्टीलाइजरों के बहकावे में ना बर्बाद कर

मैं तुम्हारी जमीन हूँ 
मैं तुम्हारी जमीन हूँ

भागचन्द मीणा - बून्दी (राजस्थान)

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