संदेश
झरना - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
झर झर झर झरता झरना, झरने का है ये कहना– चट्टानों की छाती पर चढ़, रोड़ों से कभी तनिक न डर। बाधाओं में न रुक जाना, बहते जाना, सहते जाना, च…
प्रकृति और अँधेरा - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
मानते क्यों नहीं इस दुनिया में आने के लिए हर बीज ने एक अँधेरा गर्भ में जिया है पृथ्वी को तोड़कर या गर्भ की असीम प्रसव पीड़ा के बाद …
हार का महत्व - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
समय रेत सा फिसल न जाए वक्त रहते तुम करो उपाय जीतने की आदत तो अच्छी पर हार से तू क्यों घबराए? हार तो वह अनमोल हार है जो जीवन में जीतने…
पौधे सा जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
हरियाली की चाहत लेकर, पौधा जो दुनिया में आता है, मिलती उसको तपन धूप की, कभी बिन पानी के रह जाता है। दुनिया को सुख देने की चाहत में, ज…
संघर्ष - कविता - अनूप अंबर
तिनका-तिनका बीन-बीन कर, वो अपना नीड़ सजाता है । हवाओं का अभिमान तोड़ कर, वो लक्ष्य को अपने पाता है॥ ये मेहनत का आराधक है, आशाओं की लड़…
आज क्रांति फिर लाना है - कविता - मोहित त्रिपाठी
डूब रही जो शक्ति अंधकार के घेरों में, फँसती जा रही जो कलि काल के फेरों में, उसको जगा पुनः ज्योति से ज्वाला बनाना है आज क्रांति फिर…
चमक - कविता - संजय राजभर 'समित'
न ठनक न खनक न सनक बस चुपचाप धैर्य से शांति से अनवरत सही दिशा में होश और जोश के साथ अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास से अपना कर्…
दशरथ माँझी - कविता - गोकुल कोठारी
फड़कती भुजाओं का ज़ोर देखा, क्या ख़ूब बरसे घनघोर देखा। कर्मों की बहती दरिया देखी, उससे निकलती नई राह देखी। इतिहास रचने की चाह देखी, माँझ…
उम्मीद - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
सफलता यदि छत है तो असफलताएँ उसकी सीढ़ियाँ खोकर तुमने जो पाया है देख उसे, आगे बढ़ेंगी आने वाली पीढ़ियाँ आसमाँ बड़ा है मुश्किलों का पहा…
प्रज्वलित कर लो दीप सत्य का - कविता - गोकुल कोठारी
कितना घना हो चाहे अँधेरा, एक दीप से डरता रहा है, हारा नहीं जो अब तक तमस से, हर जलजले में जलता रहा है। कहता है सूरज से आँखें मिलाकर, अग…
नाविक तू घबराता क्यों है? - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
उठती गिरती लहरें लखकर, नाविक तू घबराता क्यों है? ख़ुद या नाव पर नहीं भरोसा, तो सागर में जाता क्यों है? तरुणाई है जब तक तन में, यौवन भी …
फूल मत फूलन बनो तुम - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
मैं नहीं कहता कभी ये कामिनी, कमनीय हो तुम! या सुमुखि मानो गुलाबों की तरह रमणीय हो तुम! तुम वही हो जो कि चढ़कर के हिमालय जीत लेतीं। तुम …
पथ - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'
नित नए सपने गढ़ता है पथ न रुकता न थकता है पथ। मनुष्य की चाह है पथ, नई उम्मीदें नए हौसले कसता है पथ। कर्तव्य की राह है पथ, मेहनत का मिला…
विजय कामना - कविता - सौरभ तिवारी 'सरस्'
स्वाँस है बाक़ी अभी, विश्वास है बाक़ी अभी। हरगिज़ विजय की कामना दिल से निकालूँगा नहीं, मैं हार मानूँगा नहीं। मैं हार मानूँगा नहीं॥ स्वाँस…
मत घबराना - कविता - संगीता भोई
ख़ुशियों की सुबह जो हुई है, फिर घनेरी शाम भी होगी। गर आज हैं दिन दर्द भरे, कल राहतें तेरे नाम भी होंगी। मंज़िल मिल ही जाएगी, मत घबराना…
बीच ही सफ़र पाँव रोक ना मुसाफ़िर - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
बीच ही सफ़र पाँव रोक ना मुसाफ़िर, आगे है सुहानी तेरी राह रे। कहने को जड़ है, ना चले रे हिमालय, बहने को नदिया में गले रे हिमालय, अरे, जड़ क…
मेहनतकशों की पुकार - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे। रूठ जाए मेघा तो रुठ जाने देना डूब जाएँ तारे तो डूब जाने देना बूँद से …
पंख पसार - कविता - रिचा सिंह
लोग क्या सोचेंगे ये काम है उनका, बातें बनाना यही है रीत, कब लोगों ने तुम्हें ख़्वाब दिखाए, कब दिए हैं तुम्हें पंख? गिर गए तो है बात बन…
चलो चलें बदलाव की ओर - कविता - दीपक राही
चलो चलें बदलाव की ओर, नाव के सहारे किनारों की ओर, छौर मचाती उन लहरों की ओर, कलम की पैनी होती धार की ओर, चलो चलें बदलाव की ओर। रूढ़िवाद…
हौसलों की लहर - कविता - राजीव कुमार
लहरों को ऊँचा उठने दो, पतवार भी छुट जाने दो। डगमगा जाने दो कश्ती, तब जाकर निखरेगी अपनी हस्ती। सागर लहरों पे कश्ती डोलेगी, दिल की लहरों…