चलो चलें बदलाव की ओर - कविता - दीपक राही

चलो चलें बदलाव की ओर,
नाव के सहारे किनारों की ओर,
छौर मचाती उन लहरों की ओर,
कलम की पैनी होती धार की ओर,
चलो चलें बदलाव की ओर।

रूढ़िवादी विचारों को छोड़,
भविष्य के निर्माण की ओर, 
जात, धर्म के बंधनों को तोड़,
ऊँच नीच के भेद को छोड़,
चलो चलें बदलाव की ओर।

ख़ुद में ख़ुद से लड़ने की ओर,
नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर,
चाँदनी रात मे बढ़ते क़दमों की ओर,
बेजान से प्रगतिशील साहित्य की ओर, 
चलो चलें बदलाव की ओर।

मुरझाए हुए चेहरों से खिले हुए चेहरों की ओर,
बंद कारखानों से खुले आसमानों की ओर,
निरलज सी बहती समुद्र की धाराओं की ओर,
पगडंडी के सहारे मंज़िल की ओर,
चलो चलें बदलाव की ओर।

ढलती हुई धूप से रोशनी की ओर,
बढ़ाए क़दम बदलती हवाओं की ओर,
आओ करें कुछ ऐसा न कर पाए और,
लिखें कुछ ऐसा ना बदल पाए कोई और,
चलो चलें बदलाव की ओर।

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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