दीपक राही - जम्मू कश्मीर
चलो चलें बदलाव की ओर - कविता - दीपक राही
बुधवार, अगस्त 17, 2022
चलो चलें बदलाव की ओर,
नाव के सहारे किनारों की ओर,
छौर मचाती उन लहरों की ओर,
कलम की पैनी होती धार की ओर,
चलो चलें बदलाव की ओर।
रूढ़िवादी विचारों को छोड़,
भविष्य के निर्माण की ओर,
जात, धर्म के बंधनों को तोड़,
ऊँच नीच के भेद को छोड़,
चलो चलें बदलाव की ओर।
ख़ुद में ख़ुद से लड़ने की ओर,
नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर,
चाँदनी रात मे बढ़ते क़दमों की ओर,
बेजान से प्रगतिशील साहित्य की ओर,
चलो चलें बदलाव की ओर।
मुरझाए हुए चेहरों से खिले हुए चेहरों की ओर,
बंद कारखानों से खुले आसमानों की ओर,
निरलज सी बहती समुद्र की धाराओं की ओर,
पगडंडी के सहारे मंज़िल की ओर,
चलो चलें बदलाव की ओर।
ढलती हुई धूप से रोशनी की ओर,
बढ़ाए क़दम बदलती हवाओं की ओर,
आओ करें कुछ ऐसा न कर पाए और,
लिखें कुछ ऐसा ना बदल पाए कोई और,
चलो चलें बदलाव की ओर।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर