मत घबराना - कविता - संगीता भोई

ख़ुशियों की सुबह जो हुई है,
फिर घनेरी शाम भी होगी।
गर आज हैं दिन दर्द भरे,
कल राहतें तेरे नाम भी होंगी।
 
मंज़िल मिल ही जाएगी,
मत घबराना तू ऐ राही!
आज काँटें हैं गर राहों में,
कल फूल तमाम भी होंगे।

टूटा है जो दिल ये आज,
तो क्यूँ आँखों में आँसू हैं?
होगा फिर करिश्मा कोई,
चेहरे पर मुस्कान भी होगी।

गली-गली फिर घूम-घूम कर,
करते हैं चर्चे जो बदनामी के,
सुनोगे उन्हीं की ज़ुबानी तुम,
कल तारीफ़ें आम भी होंगी।

ग़म और ख़ुशियों का मेल है,
ज़िंदगी एक अनोखा खेल है।
हर बार पड़े जोखिम उठाना,
बड़ी अजब यहाँ की रीत है,
सीखा निराला हुनर ये जिसने,
होती उसकी हमेशा जीत है।

संगीता भोई - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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