हौसलों की लहर - कविता - राजीव कुमार

लहरों को ऊँचा उठने दो,
पतवार भी छुट जाने दो।
डगमगा जाने दो कश्ती,
तब जाकर निखरेगी अपनी हस्ती।

सागर लहरों पे कश्ती डोलेगी,
दिल की लहरों का हौसला होगा।
तुफ़ान लाख हो बुलंद सही,
जब बुलंद अपना फ़ैसला होगा।
तो पार लग जाएगी कश्ती,
तब जाकर निखरेगी अपनी हस्ती।

लहरों में डुबे तो उबरने की सनक,
लौटा कर लाएगी खोई रौनक,
इससे पहले की रह जाए कसक।
उबार लाए जो अपनी कश्ती,
तब जाकर निखरेगी अपनी हस्ती।

राजीव कुमार - बोकारो (झारखण्ड)

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