डॉ॰ आलोक चांटिया - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
प्रकृति और अँधेरा - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
रविवार, दिसंबर 04, 2022
मानते क्यों नहीं
इस दुनिया में आने के लिए
हर बीज ने एक अँधेरा
गर्भ में जिया है
पृथ्वी को तोड़कर या
गर्भ की असीम प्रसव पीड़ा
के बाद ही किसी ने
इस दुनिया में जन्म लिया है
फिर क्यों भागते हो
कोई भी दर्द या अँधेरा देखकर
प्रकृति ने तुम्हें इस
दुनिया का सच तुम्हें
दुनिया में लाने से पहले ही दे दिया है जी लो इनको भी
जीवन का असीम पहलू समझकर यही तो दर्शन माँ,
प्रकृति, भगवान सभी ने
इस पृथ्वी के हर प्राणी को दिया है।
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