संदेश
मन करता है - कविता - सौरभ तिवारी
बैठ पिता के काँधों पर इठलाने को मन करता है, मेले के खेल खिलौनों को घर लाने को मन करता है। पिता अगर फिर से मिल जाएँ उन्हें छुपा कर रख ल…
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? - कविता - स्मृति चौधरी
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? कैसी तस्वीर बनाऊँ? मन और देह की भाषा, परिभाषा लिख ना पाऊँ! उंगली थाम सिखाया चलना, सतपथ की दिशा बताई, साहस न…
पिता - कविता - डॉ. अमृता पटेल
कई शाम सिसकियाँ ली थीं फ़ोन पर मैंने, और आप अगले ही दिन मेरे होस्टल में होते थे। 'बालमन' अंदाज़ा ना था उसकी व्यस्तता, ज़िम्मेदारि…
पिता और उनका अक्स - कविता - डॉ. सत्यनारायण चौधरी
कहता नज़र आता है जब हर एक शख़्स, पिता से ही मिलते हैं तुम्हारे नैन और नक़्श। बार-बार नज़र आता है मुझमें, मुझे पिता का ही अक्स। मेरे पिता ह…
छाया है पिता - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
बरगद की घनी छाया है पिता, छाँव में उसके भूलता हर दर्द। पिता करता नहीं दिखावा कोई, आँसू छिपाता अन्तर में अपने। तोड़ता पत्थर दोपहर में …
पिता - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
जिसने हमको संसार दिया, आनंद ख़ुशी और प्यार दिया, ना तुल्य है सोने चाँदी से, प्रेम जो अपरम्पार दिया। कोई नहीं उनके समान, देंगे उनको शोहर…
बाबा - कविता - रत्नप्रिया
नानी मेरी... लाती थी बाज़ार से साड़ियाँ, चूड़ियाँ और लठवा सिंदूर। अपनी बेटी के लिए। आज वही बेटी! जा रही है बाज़ार, बे-रंग साड़ियाँ और चाँद…
पिता आप भगवान - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
आनंदित कुल पूत पिता पा, किया समर्पित जान सदा है। पिता त्याग सुख शान्ति ज़िंदगी, पूरण सुत अरमान लगा है। लौकिक झंझावात सहनकर, पिता सदा …
पिता - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
ज़िन्दगी में हर पल सुकून पाया है, माँ हरियाली है तो पिता घना साया है। पिता के कन्धे पर बैठ जग घूम लिया, देखा हमे ज़मीं पर तो उठा के चूम…
मेरे पापा - कविता - रूचिका राय
परवाह जिनकी अतुलनीय है, वह सदा ही मेरे पूजनीय हैं। दृढ़ निश्चयी, कर्तव्यपरायण, पापा सदा ही नमनीय हैं। शांत चित्त और गंभीर व्यक्तित्व, उ…
कभी छोड़ कर नहीं जाते पिता - कविता - सतीश श्रीवास्तव
इतनी दूर क्यों चले जाते हो पापा, जब से गए हो दूर बहुत याद आते हो पापा। बेटा कहाँ गया हूँ मैं क्यों होते हो उदास, देखो तो थोड़ा आँखें…
पिता - कविता - पुनेश समदर्शी
है पिता ही, जो कभी सपनों को मरने नहीं देता। हालात कितने भी हों विपरीत, मगर डरने नहीं देता।। लाख मुसीबतों में भी, मैंने पिता को हँसते द…
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है - गीत - हरवंश श्रीवास्तव "हर्फ़"
संतति के सिर पर साए सा, माँ के माथे की बिंदिया है। पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है, कायनात है, पूरी दुनिया है।। जिसकी चमक सहज ही अम्मा की …
वो पापा हैं - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
मस्तक जिसका हिमगिरि जैसा, आँखें झील हजार। अधरों पर समरसता विहँसे, शब्द-शब्द झंकार। मैं जीतूँ वह बने सिकन्दर, वो पापा हैं। मेरे चुल्लू …
पापा - कविता - अंकुर सिंह
अपने अनुभव से मेरी राह दिखाते पापा, अपने नाम से मेरी पहचान बनाते पापा। दुःख ख़ुद उठा, हमें खूब खुशियाँ देते पापा, धरा पर जिन्हें कहते प…
पिता: पहले और बाद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम नादानियों के चलते पिता के रहत उनके जज़्बात नहीं समझते, जब तक समझते हैं तब तक उन्हें खो चुके होते हैं। उनके रहते हम खुद को स्वच्छंद प…
पिता - कविता - विकाश बैनीवाल
साम-दाम-दंड-भेद के जो हकदार, सदैव पिताजी को सादर नमस्कार। भितर से कोमल बाहर से फटकार, मेरे पिताजी के चरणों में सत्कार। पिता जोश है…
फौजी का निर्णय - कहानी - सतीश श्रीवास्तव
देश की सेना में सेवा करना सचमुच ही एक अद्भुत अनुभूति देता है, अपना तन-मन राष्ट्र के लिए होता है समर्पित और यह समर्पण का भाव देता है उन…
संघर्ष - कविता - कर्मवीर सिरोवा
पिता के खुरदरे पैर जैसे ही दहलीज पर घर्षण करते थे, घर में वो निढ़ाल जिस्म एक ऊर्जा ले आता था। तिरपाल जैसी चुभती शर्ट ऐसे भीगी होती थी…
हे पिता! - कविता - शुभ्रा मिश्रा
हे पिता! तुम्हारी अंगुली पकड़ कर अभी अभी तो चलना सीखा है मैंने। संभलना सीख ही नहीं पाई ना ही दौड़ना सीख पाई मैं। अभी आगे कितनी दूर है म…
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