फिर वो गुमशुदा हो गया - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
शनिवार, जून 28, 2025
लो आज शहर में, फिर वो गुमशुदा हो गया,
घिर गया बादलों से, चाँद भी फ़ना हो गया।
रात भर तो देखी मैंने, आसमाँ पर हलचलें,
समझ पाता कुछ कि, सब धुँधला हो गया।
वो जो चल रहे थे, नक़्श-ए-क़दम पर मेरे,
आज उनका ही, हम पर दबदबा हो गया।
कल तलक था मैं, जिनको बहुत ही प्यारा,
क्यूँ आज फिर आदमी, वो दूसरा हो गया।
इस बे-रुख़ी के पीछे, बात क्या रही होगी,
मान लेना हर बात ही, मेरी ख़ता हो गया।
दोस्त जो चुप है आज, यूँ बेबसी पर मेरी,
उनका भी अब अलग, क्यूँ रास्ता हो गया।
ख़ैर ये वक़्त भी, गुज़र ही जाएगा 'सुराज'
चलो! इससे भी कुछ, नया तज़ुर्बा गया।
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