पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)
पिता - कविता - पुनेश समदर्शी
शुक्रवार, मई 21, 2021
है पिता ही, जो कभी सपनों को मरने नहीं देता।
हालात कितने भी हों विपरीत, मगर डरने नहीं देता।।
लाख मुसीबतों में भी, मैंने पिता को हँसते देखा है।
बिना पिता के बच्चों को, तरसते देखा है।।
पिता के होते जीवन की, हर मुसीबत आसान है।
पिता के होते अपना, हर एक सामान है।।
मेरे पापा मेरा हौसला, मेरी ताकत, मेरा जुनून हैं।
मेरे पापा ही हैं मेरी दुनियाँ, पापा से ही सुकून है।।
मेरी ख़ुशी की ख़ातिर पापा ने, अपनी ख़ुशी छोड़ी है।
मुझ पर हैं बेशुमार कपड़े, पापा पर एक जोड़ी है।।
कितने गिनाऊँ त्याग पिता के, बच्चों की ख़ातिर।
दुखाते हैं दिल पिता का, वे होते हैं शातिर।।
मैं पिता के एहसानों का क़र्ज़, चुका नहीं सकता।
पिता से ही हूँ मैं, दिल उनका दुखा नहीं सकता।।
शाम-सवेरे शीश झुकाऊँ, पिता आपके चरणों में।
पुत्र होने का फ़र्ज़ निभाऊँ, पिता आपके चरणों में।।
हर जन्म में मिलो पिताजी, है मेरा अरमान यही।
हर क़दम पर राह दिखाना, है मेरा अरमान यही।।
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