वो पापा हैं - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

मस्तक जिसका हिमगिरि जैसा,
आँखें झील हजार।
अधरों पर समरसता विहँसे,
शब्द-शब्द झंकार।
मैं जीतूँ वह बने सिकन्दर, वो पापा हैं।
मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर, वो पापा हैं।

फटी एड़ियों में अपने,
हर राज छुपाते हैं।
हम विचलित ना हो जाएँ,
हँसकर बतियाते हैं।
रखते मुझको दिल के अंदर, वो पापा हैं।
मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर, वो पापा हैं।

आशाओं से आकर मेरे,
हाथ मिलाते हैं।
इच्छाओं को झट से मेरे,
गले लगाते हैं।
मेरे बटुए में जो भरे मुक़द्दर, वो पापा हैं।
मेरे चुल्लू में जो भरे समंदर, वो पापा हैं।

धीरेन्द्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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