पापा - कविता - अंकुर सिंह

अपने अनुभव से मेरी राह दिखाते पापा,
अपने नाम से मेरी पहचान बनाते पापा।
दुःख ख़ुद उठा, हमें खूब खुशियाँ देते पापा,
धरा पर जिन्हें कहते परमेश्वर, वो है पापा।।

पहन कुर्ता अरू संग गमछा कंधेपर रखते पापा,
थोड़ा गुस्से संग, बड़े प्यार से पेश आते पापा।
गंजे सिर वाले, काफी स्मार्ट लगते पापा,
ख़ुद लापरवाह पर, हमपर खूब ध्यान देते पापा।।

अपनी मुस्कान दबाएँ, हमें खूब हँसाते पापा,
टूटी चप्पल पर ख़ुद, हमें जुते लाकर देते पापा।
फटी बनियान में ख़ुद, हमें कमीज़ सिलाते पापा,
हमारी छोटी क़ामयाबी से, खूब प्रसन्न होते पापा।।

बरगद जैसा छाँव है जिनका, कहलाते वो पापा,
ख़ुद से बेहतर जो हमें बनाए, कहलाते वो पापा।
हमारी ख़ातिर ख़ुद का दाँव लगाएँ, कहलाते वो पापा,
है मुझको जिनपर खूब अभिमान, कहलाते वो पापा।।

जिनके हौसलों ने मुझे बढ़ाया, है वो पापा,
जिन्होंने अपना सब फ़र्ज़ निभाया, है वो पापा।
मेरी सब ज़रूरतों को समझा, है वो पापा,
प्रणाम उस मानुष तन को, कहते जिनको सब पापा।।
पापा के कंधे पर झूल बोलूँ मैं, लव यू मेरे पापा।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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