पिता - कविता - विकाश बैनीवाल

साम-दाम-दंड-भेद के जो हकदार, 
सदैव पिताजी को सादर नमस्कार। 

भितर से कोमल बाहर से फटकार, 
मेरे पिताजी के चरणों में सत्कार। 

पिता जोश है, पिता मेरा हथियार, 
सिर पर हाथ, तो जीत लूँ संसार। 

पिता के लिए सबकुछ दिया निसार, 
माँ नहीं है तो क्या, पिता है उपहार। 

दूरसंगती से बचाता पैना औजार है, 
पिता नाम जीवन का दूजा प्यार है। 

अंगुली से सहारा जवानी में यार है, 
थोड़ा कटु पर खुशियों का भंडार है। 

हम छोटे मंत्री-नेता, पिता केंद्र सरकार है, 
जैसा बचपन में था वैसा अब बरकरार है। 

पिताजी से चमकता सम्पूर्ण परिवार है, 
हम जो है, जहाँ है, पिता के संस्कार है। 

विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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