पिता - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"

ज़िन्दगी में हर पल सुकून पाया है,
माँ हरियाली है तो पिता घना साया है।

पिता के कन्धे पर बैठ जग घूम लिया,
देखा हमे ज़मीं पर तो उठा के चूम लिया।

हमारे परवरिश के लिए क्या-क्या करता है,
दुनिया की हर मुश्किल से अकेले लड़ता है।

हमारे लिए ख़ुद की ख़ुशियाँ क़ुर्बान करता है,
हमारे भविष्य के लिए पाई-पाई जोड़ता है।

मरते दम तक हमारी सलामती मनाता है,
लाख दुःख हो पर कभी भी ना बताता है।

नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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