तन्हाई - देव घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
शुक्रवार, जुलाई 04, 2025
उमड़कर उदासी उन्मुनी उलझन-सी,
उदास उधर उसे इधर इसको करत।
वह वहाँ तड़पती तुम तमा तरसते,
उदासी उनकी दिल दहलाती मन मरत।
बनी बेडी़ बेरहम प्रथाएँ प्यार पाने में,
जुदा जान-जिस्म को करो क़ैद कुसुम करत।
मुहब्बत-मिठाई सुहाई संसार को कब?
'मारुत' इश्क़ इनका गाढ़ा गुनाह क्यों कहत?
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