पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है - गीत - हरवंश श्रीवास्तव "हर्फ़"

संतति के सिर पर साए सा,
माँ के माथे की बिंदिया है।
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है,
कायनात है, पूरी दुनिया है।।

जिसकी चमक सहज ही
अम्मा की आँखों में दिख जाती है,
जिसके जल जाने से घर की
सब अंधियारी मिट जाती है।
जिसने रातों में जल जलकर
जीवन राह दिखाई है,
जिसकी लौ हवाओं से लड़कर,
संघर्ष पाठ सिखलाती है।
घर के ओसाने पर जलता,
पिता असल में वही दिया है,
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है,
कायनात है, पूरी दुनिया है।।

माँ ममता की मंदाकिनी तो
पिता पुण्य का पावन तट है,
प्रखर प्रभंजन के प्रवाह को
ख़ामोशी से सहता वट है।
दिव्य दिवाकर की दीपाली के
सम्मुख भी शीतल रहकर,
सहज भाव से सुत तृष्णा की
तृप्ति करादे वो पनघट है।
माँ की लोरी पर आती जो,
पिता वही सुख की निंदिया है,
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है,
कायनात है, पूरी दुनिया है।।

अपने कंधों पर देखो तो,
कितना बोझ लिए फिरते हैं,
घर की दीवारों की पाटों में,
पल पल पिसते हैं, पिरते हैं।
संतति सृजन का स्वप्न सजा हो,
हरसय जिसकी आँखों में,
फिर कब, कैसे और भला क्यूँ,
अँखियों में अश्रु ठहरते हैं।
कभी न जो मर्यादा लाँघे,
पिता वही बहता दरिया है,
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है,
कायनात है, पूरी दुनिया है।।

संतति के सिर पर साए सा,
माँ के माथे की बिंदिया है।
पिता महज़ एक व्यक्ति नहीं है,
भूसुर है, पूरी दुनिया है।।

हरवंश श्रीवास्तव "हर्फ़" - बाँदा (उत्तर प्रदेश)

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