मेरे पापा - कविता - रूचिका राय

परवाह जिनकी अतुलनीय है,
वह सदा ही मेरे पूजनीय हैं।
दृढ़ निश्चयी, कर्तव्यपरायण,
पापा सदा ही नमनीय हैं।
शांत चित्त और गंभीर व्यक्तित्व,
उनकी बातें सदा ही अनुकरणीय।
है ज़िम्मेदारियों का पूर्ण एहसास,
मेरे लिए जीवन में सदा ख़ास।
मेरे जीवन को मिला उनसे सम्बल,
वे ही सदा बनें मेरा आत्मबल।
हर परिस्थितियों में ढाल बने,
वाकई व्यक्तित्व कमाल बने।
नहीं मुखर हो लाड़ उठाया,
नही कभी उन्होंने प्रेम दिखाया।
मूक बन सदा ही ख़्याल रखा,
ऐसे ही अपनापन उनसे पाया।
रखा सदा ही सुविधा का ध्यान,
नही किसी समस्या से वो अंजान।
हर समस्या का निदान किया,
वाकई उन्होंने यह कमाल किया।
मेरे अस्तित्व को मिली जो पहचान,
यह उनके ही अवलंब का परिणाम।
उनके बिना सदा ही शून्य रही मैं,
यह सच ले आप सब जान।

रूचिका राय - सिवान (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos