संदेश
वृक्ष महिमा - दोहा छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
धरती को दुख दे रहे, धूल,धुआ अरु शोर। इनसे लड़ना हो सुलभ, वृक्ष लगे चहु ओर॥ विटप औषधी दे रहे, रोके रेगिस्तान। तरुवर मीत वसुन्धरा, कलियुग…
आज़ादी का पर्व - दोहा छंद - द्रौपदी साहू
वीरों के संघर्ष से, मुक्त हुआ जब देश। लहर उठी आनंद की, दूर हुआ सब क्लेश॥ आज़ादी का पर्व है, करते सब सम्मान। मन में भर उत्साह से, गाते ह…
आज़ादी महोत्सव - दोहा छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
आज़ादी के दीप का, घर-घर हो उजियार। कर अभिनंदन देश का, लगा तिरंगा द्वार।। नेक-नेक सोचों सभी, करो देश हित नेक। आज़ादी के जश्न का, सभी करो …
अरण्य चालीसा - चौपाई छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
दोहाः गुरुपद कमल नमन करूँ, वन्दउ प्रथम गणेश। वरद हस्त मस्तक धरो, करिए कृपा विशेष॥ जय वन देवी, जय वन देवा। देत सकल जग मंगल मेवा॥ जय जय …
हरि - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'
कमल नयन पट, नमन सकल जर, खलल जगत जब, हरि उठ छल धर। तप जप वश कर, बम शिव धर वर, मटक कमर तब, भसम करत खर। क़हर परशुधर, बरसत डटकर, क्षत्र वध …
हर हर शंकर भोले दानी - चौपाई छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हर हर शंकर भोले दानी। देवासुर सब कीर्ति बखानी॥ द्वादश ज्योतिर्लिङ्गहि रूपा। त्रिलोकेश्वर रुप अनूपा॥ महादेव भुवनेश्वर लोका। कैलाशी हरते…
गुरु महिमा - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'
गुरु ज्ञान का अमृत, जिसका न कभी अंत। अज्ञानता गुरुवर, करते हरण-हरण॥ दीप ज्ञान का जलाए, अंधकार को मिटाए। नमन वंदन गुरु, कमल चरण-चरण॥ कर…
राधा नाचें श्याम मन - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
राधा नाचें श्याम मन, श्याम सार संसार। मुरली मुरली में समा, नाचें पालनहार॥ नाचें पालन हार, सभी मन मोह लुभावे। मुरली की है तान, सार संसा…
शशिधर बम बम - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'
तिलक विजय सज गंग लट जट सट। हर हर सब पर बम बम बम बम॥ कंठ पर विषधर विष पिय जमकर। बम बम बम बम हर हर बम बम॥ सरपट करतल अपपठ फट कर। उग्र भव…
आया महीना जून का - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
आया महीना जून का, सूरज उगले आग। चिलचिलाती धूप में, बाहर ना जाइए। गरम तवे सी धरती, बरस रहे अंगारे। आग के गोले सी लूएँ, ख़ुद को बचा…
नयन-नयन में हो रही - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
नयन-नयन में हो रही, नयन-नयन की बात। प्रेम प्यार का अंतरा, गीत-ग़ज़ल शुरुआत॥ गीत ग़ज़ल शुरुआत, शब्द रचना है सुरीली। ऐसे समझो यार, जैस है…
दिशा दो नाथ - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
जैसा कहते आप हैं, करन चहौं दिन-रात। बिन आज्ञा नहिं डोलत, थर-थर पीपर पात॥ थर-थर पीपर पात, धरा को पग में बांधे। सारा जग का बोझ, धरे हो अ…
नारी सशक्तिकरण - घनाक्षरी छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'
ममता की मूरत हो, भला सा एहसास हो। आँचल में नेह भरा, प्रेम का आवास हो।। सृष्टि का निर्माण किया, वंश बढा धरा बनी। जहाँ नहीं दुख दिखे, सु…
दिल को गंगा जली बना दो - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
दिल को गंगा जली बना दो, तन वृंदावन धाम। घट-घट में अब बसा हुआ है, राधे-राधे नाम।। बिलख रही है सभी गोपियाँ, व्याकुलता का दौर। आस मिलन की…
नवरात्रि महापर्व - कुण्डलिया छंद - शमा परवीन
मनभावन पावन लगा, नवरात्रि महा पर्व। करते आएँ हैं सदा, हम सब इस पर गर्व॥ हम सब इस पर गर्व, चेतना नई जगाएँ। रख कर नौ उपवास, मातु को शीश …
होली आई है - घनाक्षरी छंद - डॉ॰ सुमन सुरभि
1 चहुँ दिश उड़ रहा, रंग औ गुलाल सखी, सतरंगी चुनरी में, सज होली आई है। लाल हैं कपोल और, पीत रंग दिव्य भाल, कंचुकी भी प्रीत भरे रंग में, …
रंग गुलाबी छा गया - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
रंग गुलाबी छा गया, गली-गली गुलज़ार। अंग-अंग गीले दिखें, होली के त्योहार।। होली के त्योहार, हलचल मची है दिल में। प्रीति-प्यार का हार, …
नारी - दोहा छंद - भाऊराव महंत
रोक सको तो रोक लो, नारी की रफ़्तार। अब पहले जैसी नहीं, वह अबला लाचार॥ जब नारी चुपचाप थी, दिखता था संस्कार। बदतमीज़ लगने लगी, बोली जिस दि…
पतंग, परींदे, भंवरा - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
मधुर मास वन माधवी, आगम नवल वसन्त। उड़े पतंगा कुसुम पर, भंवरा गूंज दिगन्त॥ सुरभित यौवन कुसुम का, देख भ्रमर मंडराय। सतरंगी ये तितलिया…
साथ निमाएँ उम्र भर - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
दाम्पत्य प्रणय मन माधवी, माघी माह वसन्त। मनमोहन माधव मधुर, सुरभित सुमन अनन्त।। साथ निभाए उम्र भर, हम जीवन की साज। सतरंगी ग़म या ख़ुशी, प…
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