होली आई है - घनाक्षरी छंद - डॉ॰ सुमन सुरभि

1
चहुँ दिश उड़ रहा, रंग औ गुलाल सखी,
सतरंगी चुनरी में, सज होली आई है।
लाल हैं कपोल और, पीत रंग दिव्य भाल,
कंचुकी भी प्रीत भरे रंग में, भिगाई है।
इंद्रधनुषी रंगों में, डूब गया आसमान,
गाँव-गाँव, गली-गली, झूमी अंगनाई है।
भाए बरजोरी और, प्यार मनुहार भाए,
होली सद्भावना, के रंग में नहाई है।

2
प्यार तकरार भाए, मान मनुहार भाए,
फगुनी बयार भाए, रंग की बहार है।
गाँव गली में उमंग, हास परिहास संग,
बाजे ढोल औ मृदंग, रस की फुहार है।
नेह में गुलाल घुला, मन का मलाल धुला,
चित्त हुआ चुलबुला, फाग का ख़ुमार है। 
शीत का हुआ निदान, प्रमुदित दिनमान,
मगन हुआ जहान, होली का त्योहार है।

डॉ॰ सुमन सुरभि - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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