पतंग, परींदे, भंवरा - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

मधुर मास वन माधवी, आगम नवल वसन्त। 
उड़े पतंगा कुसुम पर, भंवरा गूंज दिगन्त॥ 

सुरभित यौवन कुसुम का, देख भ्रमर मंडराय। 
सतरंगी ये तितलियाँ, भर उड़ान मुस्काय॥ 

मधुप मुग्ध मधुरिम सरस, पुष्पित पुष्प पराग। 
मदमाते मधुपान से, दिखा प्रीत अनुराग॥ 
 
कीट पतंगों से मुदित, प्रकृति खिली मुस्कान। 
बासन्तिक रमणीयता, करे भंवर मधुगान॥ 

शीतल कोमल पुष्प दल, खिले अरुण नव भोर। 
उड़े परिंदे व्योम में, गूंजे भंवरा शोर॥ 

अद्भुत शोभा प्रकृति की, यौवन धार तरंग। 
प्रीत मिलन प्रेमी युगल, महके इश्क़ी अंग॥ 

रोम-रोम पुलकित प्रिया, थिरके दिल मनमीत। 
मदन बाण    घायल युगल,अभिनव कोकिल गीत॥ 

खिला सरसि सरसिज सुमन, सुरभित सुभग मिठास। 
शोभित शुभ मधुमास चहुँ, भंवरा प्रीत विलास॥

भव्य मनोहर मधुरिमा, छाई नवल बसन्त। 
कानन तरु पादप ललित, कुसुमित फलित अनंत॥ 

माघ फागुनी माधुरी, प्रवहित स्वच्छ समीर। 
खिली प्रीत कलियाँ चमन, लिख यौवन तस्वीर॥ 
 
अभिनव वासन्तिक छटा, चहके गगन विहंग। 
भंवर गीत सुन कशिश हिय, मची लाज रति जंग॥ 
 
कीट पतंगें परींदे, भंवर गूंज अविराम। 
वासन्तिक ऋतु भंगिमा, बनी प्रकृति सुखधाम॥ 


Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos