गुरु महिमा - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'

गुरु ज्ञान का अमृत, जिसका न कभी अंत।
अज्ञानता गुरुवर, करते हरण-हरण॥

दीप ज्ञान का जलाए, अंधकार को मिटाए।
नमन वंदन गुरु, कमल चरण-चरण॥

कर्म गति सीखलाए, प्राणशक्ति को बढ़ाए।
ज्ञान का प्रसाद सभी, करले वरण-वरण॥

मातु पितु गुरुवर, गुरुज्ञान तरूवर।
विद्या धन सर्वोपरि विनय करण-करण॥

बुद्धि स्वामि कहलाए, ज्ञान सरिता बहाए।
दुःख हर्ता सुख कर्ता, गुरु की शरण-शरण॥

गुरुवर देव धाम, कोटि-कोटि है प्रणाम।
पावन शरणा गति, धीरज धरण-धरण॥

अवगुण का शमन, अज्ञानता का दमन।
विद्या दान अनमोल, संतोस भरण-भरण॥

गुरु भाग्य के विधाता, जगत प्रकाश दाता।
जय जय गुरुवर, अनंत किरण-किरण॥

रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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