आया महीना जून का - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी

आया महीना जून का, 
सूरज उगले आग। 
चिलचिलाती धूप में, 
बाहर ना जाइए।

गरम तवे सी धरती, 
बरस रहे अंगारे। 
आग के गोले सी लूएँ, 
ख़ुद को बचाइए।

गर्मी के मारे पखेरू, 
उड़ते फिरे बेहाल। 
पानी के परिंडे कहीं, 
सज्जनों लगाइए।

सड़के सूनी हो रही, 
तपे दोपहरी तेज़। 
भीषण गर्मी में पानी, 
सबको पिलाइए।

गर्म हवाएँ लूँ चले, 
अंधड़ और तूफ़ान। 
तपे महीना जून का, 
तन ढक आइए।

बहे पसीना जून में, 
सब गर्मी से बेहाल। 
दूर-दूर छाँव नहीं, 
धूप में ना जाइए।

धरती तपे आसमाँ, 
राहे तपे दिन-रात। 
राहत रैन बसेरा, 
कोई बनवाइए।

सूख रहे पेड़-पौधे, 
सहकर गर्मी मार। 
धरा रहे हरी-भरी, 
वृक्ष भी बचाइए।

रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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