दिल को गंगा जली बना दो, तन वृंदावन धाम।
घट-घट में अब बसा हुआ है, राधे-राधे नाम।।
बिलख रही है सभी गोपियाँ, व्याकुलता का दौर।
आस मिलन की गोपी के दिल, मन में नाचे मोर।।
खोज रहीं हैं कुंज गलिन में, नटवर नंद किशोर।
राधे-कृष्ण का मित्रो मचता, वृंदावन में शोर।।
कृष्णा की यादों में खोया, बृष-भानुजा दुलार।
एक झलक दिखलाओ कान्हा, डूब रहा मझधार।।
हार-प्यार का लिए खड़ी है, भरथाने की नार।
आओ माखन चोर नंद के, खोज रहा है प्यार।।
भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)