दिशा दो नाथ - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

जैसा कहते आप हैं, करन चहौं दिन-रात।
बिन आज्ञा नहिं डोलत, थर-थर पीपर पात॥
थर-थर पीपर पात, धरा को पग में बांधे।
सारा जग का बोझ, धरे हो अपने कांधे॥
'अंशु' दिशा दो नाथ, चलूँ प्रभु मैं पथ वैसा।
दे दो ऐसी बुद्धि, करूँ मैं चाहो जैसा॥

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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