अरण्य चालीसा - चौपाई छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'

दोहाः
गुरुपद कमल नमन करूँ, वन्दउ प्रथम गणेश।
वरद हस्त मस्तक धरो, करिए कृपा विशेष॥

जय वन देवी, जय वन देवा।
देत सकल जग मंगल मेवा॥

जय जय सकल विटप, जल धारा।
जय गिरि खोह जगत आधारा॥

घाटी-घाटी वन्दन मेरा।
दर्रा-दर्रा नमन घनेरा॥

हे खगेश दल आश्रय दाता।
नमन  करउ  वनवासी भ्राता॥

हे जग जीवन पोषक देवा।
करते सब वन प्रेमी सेवा॥

संस्कृति सज्जनता वन मूला।
सघन अरण्य कटे सब शूला॥

सरिता जनक सलिल अति पावन।
हे अरण्य भू ताप नशावन॥

जलचर, थलचर नभचर भाते।
जीव उभयचर आश्रय पाते॥

हे अमूल्य औशधि भण्डारा।
व्याधि विहीन सकल संसारा॥

रक्षा कवच धरा के वन है।
इस वन को मेरा वन्दन है॥

वन ही शिव वन ब्रह्म स्वरूपा।
वन जगनायक पालक रुपा॥

विटप प्रदूषण के संहारक।
सकल तनाव दुखों के मारक॥

वरनिन जाइ मनोहरताई।
सकल शान्ति कांतार समाई॥

वन बिनु जीवन संभव नाहीं।
कर विचार देखहु मन माहीं॥

साँभर चीतल अरु चिंकारा।
भालू जरख नाग विष धारा॥

मगरमच्छ ख़रगोश घनेरे।
कछुआ याक जीव बहुतेरे॥

कोयल कागा और मयूरा।
अन्तहीन खगदल भरपूरा॥

बाघ सिंह गज और बघेरा।
सेहि नेवला वन मँह डेरा॥

रेगिस्तान बाढ़ को रोके।
कानन संभव शीतल झोंके॥

वृक्षारोपण पुण्य प्रतापा।
काटत सकल पाप संतापा॥

यज्ञ हवन पूजा जप होई।
बिनु अरण्य सम्पन्न न सोई॥

कानन सरिता जीवन दाता।
सलिल शैलजा भाग्य विधाता॥

मृदा प्रदूशण निकट न आवे।
वन माटी का मोल बढ़ावे॥

पवन प्रदूषण कानन नाशे।
रोग शोक सम्पूर्ण विनाशे॥

कानन संग धरा सुखदायी।
बिनु तरु भू बंजर दुखदायी॥

यदुकुल भूषण कृष्ण कन्हाई।
वन में ही तो गाय चराई॥

वंशी वट पर कृष्ण कन्हाई।
लीलाधर लीला दिखलाई॥

दिया राम को जब वनवासा।
बरस चतुर्दश किया निवासा॥

सकल सर्व सुख कानन संगा।
व्याधि नशाय करे भल चंगा॥

आक्सीजन का अचल खजाना।
विष पीते वन अमृत दाना॥

कन्द मूल फल लकुटी देवा।
सो नर धन्य करे वन सेवा॥

अगनित वृक्ष सघन हरियाली।
वन से ही होती ख़ुशहाली॥

घटते वन घटती हरियाली।
सिमट रही जग से ख़ुशहाली॥

मेघा नहीं मेघ बरसावे।
बून्द-बून्द जल को तरसावे॥

धरती दहक रही अंगारा।
बिनु तरु विकल सकल संसारा॥

विटप विहीन मही सुनसाना।
बाढ़ अकाल ताप विधि नाना॥

हे कानन घन घोर लुभावन।
सुलभ वृष्टि जन जन मन भावन॥

महिमा अमति न जाय बखानी।
जहँ कानन तहँ शंकर दानी॥

शान्ति कान्ति सुख सम्पति दाता।
जन जीवन के भाग्य विधाता॥

बिनु कान्तार चले ना गाड़ी।
गाथा गाता दास "अनाड़ी"॥

दोहाः
जीव और वन जब मिले, जीवन बने महान।
वन के बिनु जीवन नहीं, अटल सत्य यह जान॥
बिनु अरण्य जीवन नहीं, वन बिनु ना सुख चैन।
जो सुख चाहे जगत का, सेवा कर दिन रैन॥

हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी' - सवाई माधोपुर (राजस्थान)

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