वृक्ष महिमा - दोहा छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'

धरती को दुख दे रहे, धूल,धुआ अरु शोर।
इनसे लड़ना हो सुलभ, वृक्ष लगे चहु ओर॥

विटप औषधी दे रहे, रोके रेगिस्तान।
तरुवर मीत वसुन्धरा, कलियुग का भगवान॥

शीतल ठण्डी छाँव से, करें शान्ति संचार।
मनोभाव सात्विक सदा, तरुवर तारणहार॥

कोटि लाभ कानन फले, महिमा विपिन अनन्त।
बिनु अरण्य जीवन नरक, होगा दुखमय अन्त॥

पाप किया तरु काट के, वृक्ष लगाया पुण्य।
विटप लगे लाखों मिले, वृक्ष कटे तो शुन्य॥

नीर सम्पदा वनन की, वन जल के भण्डार।
वन से ही आनन्द चहु, वन बिनु बंटाधार॥

अचला की आभा विटप, विटप धरा शृंगार,
बिरवा वसुधा प्राण भी, जीवन का आधार॥

वनमय जीवन मनन वन, सुखानन्द घन घोर।
मन्द मन्द मारुत बहे, खग कलरव चहु ओर॥

अगम कतारे रोकती, पवन प्रवाह अपार।
आँधी अन्धड़ शान्त कर, विटप करे उपकार॥

प्राणपवन भण्डार ये, जीव जगत आधार।
जीवन पर सबसे बड़ा, शाखी का उपकार॥

हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी' - सवाई माधोपुर (राजस्थान)

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