नारी सशक्तिकरण - घनाक्षरी छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'

ममता की मूरत हो, भला सा एहसास हो।
आँचल में नेह भरा, प्रेम का आवास हो।।
सृष्टि का निर्माण किया, वंश बढा धरा बनी।
जहाँ नहीं दुख दिखे, सुख का आकाश हो।।

धीरज का पर्याय हो, अवतार टेरेसा का।
जो अंग्रेजों पर टूटी, वो लक्ष्मी की शक्ति हो।।
गांधारी सी पतिव्रता, सती की तरह दृढी।
त्याग किया सीता जैसा, मीरा जैसी भक्ति हो।।

गार्गी-अपाला की भाँति, विद्वान कहलाई थी।
कल्पना बनके उड़ी, सर्वोच्च उड़ान हो।।
माता-पिता की परी हो, भाई का अभिमान हो।
जिस घर लक्ष्मी बनी, वहाँ का सम्मान हो।।

रोशन किया खेल को, मैरी कॉम सी खिलाड़ी।
महादेवी की लेखनी, लता की आवाज़ हो।।
तुमसे है जग सारा, जीने का आधार तुम।
अनाहद राग लगे, मधुरम साज हो।।

संगीता गौतम 'जयाश्री' - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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