हरि - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'

कमल नयन पट, नमन सकल जर,
खलल जगत जब, हरि उठ छल धर।

तप जप वश कर, बम शिव धर वर,
मटक कमर तब, भसम करत खर।

क़हर परशुधर, बरसत डटकर,
क्षत्र वध कर सब, रण पट पलभर।

शिशु ललकार सुन, मधुरिपु अवतर,
धरम कहत सब, नटखट हरिहर।

अदित अनलमुख, मखमल पद सर,
नट कद बन कस, बलि मद रस कर।

दसरथ सुत बन, रघुवर वनचर,
चरित कहत जन, यश रट भरभर।

उदक घुसत इला, भजन रमन हर,
मकर बढ़त जब, जलधि कपत थर।

अजर अमर भव, वासुकि मथ कर,
रतन अजय थल, विपत शमन वर।

रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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