संदेश
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं - कविता - मयंक द्विवेदी
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं, यह मन के उद्गार है। कुछ टीस रही होगी दिल में, ये इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मैंने शब्दों को सँजोया नहीं, ये …
कविताएँ - कविता - सुनील कुमार महला
हर ऱोज साधना का चरम फल प्राप्त करतीं हैं कविताएँ भावनाओं को ब्रह्म पर केन्द्रित करना आसान काम नहीं है असाधारण महागाथा कविताएँ जब गातीं…
हे निशा निमंत्रण के द्योतक - कविता - राघवेंद्र सिंह | हरिवंशराय बच्चन पर कविता
आशा, वेदना और आत्मानुभूति के कवि, मधुशाला जैसी अमर कृति के द्योतक कवि शिरोमणि स्मृतिशेष हरिवंश राय बच्चन जी के चरणों में नमन वंदन करती…
गमले में बोई ग़ज़लें - कविता - रमाकान्त चौधरी
जाने कितनी घास उगी थी उन यतीम गमलों में जो रखे थे छत की मुंडेर पर। ख़र्च कर दी मैंने काफ़ी एनर्जी उन्हें साफ़ करने में। और फिर मैंने ब…
मैं क्यों लिखता हूँ? - कविता - गोकुल कोठारी
या छंद हैं? या द्वन्द्व हैं? या भीतर का दावानल? या मिटाने तीव्र तपन को शब्द बने हैं गंगाजल? या साकार हूँ? या निर्विकार हूँ? या लीक से …
कविता तुम मेरी साथी सी - कविता - मोहित त्रिपाठी
कविता तुम मेरी साथी सी संग तेल दिया तुम बाती सी, भर कर भावों से मेरा मन ज्योतित जीवन का हर क्षण। कविता तुम मेरी साथी सी अयोध्या म…
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
मैं दिनकर का अनुयायी हूँ ओज भरी हुँकार लिखूँ, देशभक्ति में क़लम डुबती कविता की रसधार लिखूँ। अन्नदाता की मसीहा लेखनी भावों की बहती धारा,…
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - कविता - गोकुल कोठारी
छोड़े पीछे दीप हज़ारों, सूरज को जब निद्रा आए, अलसाया था जड़ चेतन, वह शब्दों से ख़ूब जगाए। प्रज्वलित है वह उष्ण दिवाकर, धरा धरोहर वाकी है…
रामधारी सिंह 'दिनकर' - कविता - आर॰ सी॰ यादव
प्रबल लेखनी के सर्जक तुम, सुंदर शब्दों के शिल्पकार। 'रेणुका' 'रसवन्ती' 'द्वंद्वगीत', 'कविश्री' की हुँक…
हे जनमानस के राष्ट्रकवि! - कविता - राघवेंद्र सिंह | रामधारी सिंह 'दिनकर' पर कविता
साहित्य धरा के नलिन पुष्प, वसुधा पर भूषित प्रवर अंश। है नमन तुम्हें दिनकर उजास, हो दीप्तिमान तुम काव्य वंश। सौंदर्यमयी आभा, विभूति, नभ…
जय दिनकर - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल | रामधारी सिंह 'दिनकर' पर कविता
जन-जन की कड़क वाणी हो तुम, हिंदी की प्रखर अमर कहानी हो तुम। कीर्ति तुम्हारी बने गगनचुंबी शिखर, साक्षात रवि सी आभा है तेरी दिनकर॥ भारत …
कवि होना फिर व्यर्थ है - कविता - रमाकान्त चौधरी
लिख न सके यदि दर्द किसी का, कवि होना फिर व्यर्थ है। दर्द उजालों को भी होते, पत्थर को भी आँसू आते। धूप भी जलती ख़ुद की तपन से, भीगे स…
कविताएँ जन्म लेती है - कविता - इमरान खान
स्वाभाविक है उन शब्दों का विकसित होना जिसके मूल में कविताएँ जन्म लेती है, कविता जीवन है या जीवन कविता है, जिसके अन्तस में कवि ख़ुद को …
वह अपना-सा - कहानी - अनुराग उपाध्याय
वैसे तो शिमला की घाटी, वहाँ की वादी, वहाँ का गायन, वहाँ की सुंदरता आदि न केवल भारत में अपितु संसार भर में चर्चित और लोकप्रिय है। लेकिन…
कलम का पुजारी - कविता - रमाकांत सोनी
नज़र उठाकर देखो ज़रा, पहचान लीजिए। कलम का पुजारी हूँ, ज़रा ध्यान दीजिए। शब्दों की माला लेकर, भाव मोती पिरोता हूँ। काग़ज़ कलम लेकर, मैं सप…
हम लेखक हैं जनाब - कविता - दीक्षा
काश! लोग समझ पाते काश! एक लेखक की ज़िंदगी से रू-ब-रू हो पाते, वो कैसे लिखता है वो ही जानता है घंटो बैठकर लिखने के लिए बस चाँद को निहारत…
क़लम - कविता - संजय परगाँई
कभी अतीत की यादें, तो कभी भविष्य की बातें, कभी टूटे दिलों के हाल, तो कभी मोह मायाजाल, कभी अधूरी सी कहानी, तो कभी अजीब सुनसानी, कभी ज़मा…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
अब आया समझ में - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अब आया समझ में कि कवि कैसे बन जाते हैं, मन की पीड़ा हृदय तक जब हिलोर लेती है तब कवि बन जाते है। तुम ही तो हो समाज के असल पथ प्रदर्श…
बंद लिफ़ाफ़ों में - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
मौत से पहले कोई ज़मीन ख़रीदेगा, आने वाली पीढ़ियों के लिए, दे जाएगा अपनी औलादों को, ख़ुद से महँगा सोना चाँदी, ज़मीन जायदाद और न जाने क्या-क…
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