रामधारी सिंह 'दिनकर' - कविता - आर॰ सी॰ यादव

प्रबल लेखनी के सर्जक तुम,
सुंदर शब्दों के शिल्पकार।
'रेणुका' 'रसवन्ती' 'द्वंद्वगीत',
'कविश्री' की हुँकार॥

'रश्मिरथी' की किरणों से,
फैला चहुँओर उजाला।
'कुरूक्षेत्र' की रणभेरी से,
जग में फैली भीषण ज्वाला॥

'सामधेनी' सामाजिक चिंतन,
'हारे को हरिनाम' सहारा।
भारतीय संस्कृति के परम पुरोधा,
'धूप-छाँव' से काव्य सँवारा॥

ग्राम्यांचल के मानस मोती,
ओज पूर्ण सृजन के प्रेरक।
'उर्वशी' का प्रेम प्रणय,
'वट-पीपल' के सच्चे सेवक॥

हिंदी के मूर्धन्य शिरोमणि,
दीप जले अविचल अविराम।
कथाकार! हे काव्य शिल्पी!
श्रद्धा विनत प्रणाम॥

आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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