कविताएँ - कविता - सुनील कुमार महला

हर ऱोज
साधना का चरम फल प्राप्त करतीं हैं
कविताएँ
भावनाओं को ब्रह्म पर केन्द्रित करना
आसान काम नहीं है
असाधारण महागाथा
कविताएँ जब गातीं हैं
खींचती हैं विलक्षण चित्र
शबनम की बूँदों से लेकर
ब्रह्मांड में समाई
हरेक चीज़ का
विषय वस्तुएँ बहतीं हैं अनवरत
काग़ज़ के कैनवास पर
कविताएँ कभी काल-कलवित नहीं होतीं
कविताएँ तो
समाधि लेती हैं
हृदय के स्पंदनों में 
भाव तैरते हैं
कोई संपादक तो क्या दुनिया की कोई ताक़त
भावों के अविस्मरणीय चरित्र को
मार सकती है क्या भला?
समाधि की रेत में लीन होतीं हैं कविताएँ
समाधि में होना
मरना नहीं है रत होना है
समाधि की आसक्ति
जकड़े रहती है कविताओं को
इस समाधि में जीवन के झंकृत तार होते हैं
जो झनकते हैं
खनकते हैं
कंपन करते रहते हैं
कविताओं की ऊर्जा छलकती है
समाधि में बंद होकर
वे अवतरित होती हैं, अंकुरित होती हैं
पल्लवन, पोषण
समाधि में नदी नीर की तरह
बिना किसी छेड़छाड़ के बहता रहता है
ग़ौर से सुनना कभी
आहट सुनाई देगी
समाधि विफलताओं की प्रणेता नहीं होती
देखना तुम कभी समाधि का तेज़
अमरकाल के अनन्त पथ में
पदचिह्न आएँगे नज़र
समाधि में राख नहीं है
भावनाओं के सभी फूल संचित हैं
समाधि में संलिप्त हैं
आशाओं की सभी चिनगारियाँ
समाधि में
समाई हुई कविताएँ
शब्दों के बोझ से परे होतीं हैं
मकड़जाल नहीं होता जहाँ कलिष्ट शब्दों का
कविताएँ उलझती नहीं है
समाधि की मौन प्रार्थनाएँ
जल्दी पहुँचती हैं
ईश्वर तक
एकाकार हो जातीं हैं
बिखेरती हैं सुरभि
शून्य में
एक कोना रहता है सदैव सुरक्षित
क्योंकि
कवि मर सकता है
विचार कभी मरा नहीं करते
वो डोलते हैं, मँडराते हैं
तितलियों की तरह
कहीं न कहीं
गूँजती है कविताएँ
हर वेदी, हर पनघट, हर दहलीज़
सुनना कभी तुम
समाधिग्रस्त होकर
कविता की बात
जो जीवन की कलाइयों में रग बनकर
दौड़ती है
ध्यान लगाना कभी शांत बैठकर
माथे के बीचों-बीच
नज़र आएँगी
हर तरफ़
जीवन कविताएँ।

सुनील कुमार महला - संगरिया, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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