मैं दिनकर का अनुयायी हूँ ओज भरी हुँकार लिखूँ,
देशभक्ति में क़लम डुबती कविता की रसधार लिखूँ।
अन्नदाता की मसीहा लेखनी भावों की बहती धारा,
शब्द शिल्प बेजोड़ अनोखा काव्य सृजन लगे प्यारा।
शब्द जब मिलते नहीं भाव सिंधु हिलोरे खाता है,
हिलता है सिंहासन जब भी क़लमकार थमाता है।
राष्ट्रहित में राष्ट्रदीप ले जो राष्ट्र ज्योति जलाता है,
क़लम की मशाल जला उजियारा जग में लाता है।
शब्द सारे मोती बनकर जब दुनिया में छा जाते हैं,
दिल की धड़कनों से होकर होठों तक भी आते हैं।
कभी तराने गीतों के कभी आनंद की बरसात करें,
ख़ुशियों का खजाना प्यारा प्रीत भरी हर बात करें।
जिनकी वाणी में झरती काव्य की ओज भरी रसधार,
शत-शत वंदन मेरा उनको दिनकर को सादर नमस्कार।
रमाकान्त सोनी 'सुदर्शन' - झुंझुनू (राजस्थान)