कलम का पुजारी - कविता - रमाकांत सोनी

नज़र उठाकर देखो ज़रा, पहचान लीजिए। 
कलम का पुजारी हूँ, ज़रा ध्यान दीजिए।

शब्दों की माला लेकर, भाव मोती पिरोता हूँ। 
काग़ज़ कलम लेकर, मैं सपनों में खोता हूँ। 

गीत ग़ज़ल छंद मुक्तक, दोहा चौपाई गाऊँ। 
मनमंदिर माँ शारदे, पूजा कर दीप जलाऊँ। 

भाव भगीरथी उमड़े, महक जाए मन ये सारा‌। 
काव्य की सरिता बहे, गंगा सी अविरल धारा। 

ओज तेज़ कांति ले, सौम्य शब्द मनभावन से। 
दिल तक दस्तक दे जाए, मधुर बोल सावन से। 

झूम उठे महफ़िल सारी, जब मन मयूरा नाचता। 
मोहक मुस्कान लबों पर, कविता कोई बाँचता। 

सारे सदन को मोह ले, कविता के बोल प्यारे। 
मधुर तराने गीत मीठे, सुरीले अंदाज़ सारे। 

शारदे की कृपा सारी, शब्दों का भंडार वो। 
वाणी मुखर कर देती, जग किर्ती दातार वो।

रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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