हम लेखक हैं जनाब - कविता - दीक्षा

काश! लोग समझ पाते
काश! एक लेखक की ज़िंदगी से रू-ब-रू हो पाते,
वो कैसे लिखता है वो ही जानता है
घंटो बैठकर लिखने के लिए बस चाँद को निहारता है।
तारों से बातें करता है,
लगता है पागल हो गया है, भला लिखने के लिए ऐसा कौन करता है?
हाँ वो पागल ही है।
हाँ वो पागल ही है
जो नींद न आने पर ख़्वाब लिख देता है,
हाँ वो पागल ही है
जो कलम उठाते ही सैलाब लिख देता है,
हाँ वो पागल ही है
जो आसमान में किरणें आफ़ताब की लिख देता है,
हाँ वो पागल ही है।
चंद शब्दों में अपनी कहानी बयाँ करना आता है उसे,
अपनी हर एक पंक्ति से जज़्बात जोड़ना आता है उसे,
सोच की गहराई में डूबकर, विचारों में तैरकर
फिर शब्दों का कीनारा ढूँढना आता है उसे।
किसी लेखक से ये मत पूछना कभी कि वो करता क्या है?
क्योंकि जो वो करता है वो शायद तुम भी नहीं कर सकते
तो कभी किसी लेखक से ये मत कहना कि वो ये ऊल-जलूल लिखता क्या है?
वो दुनिया बदलने की ताक़त रखता है,
वो इतिहास रचने की ताक़त रखता है,
वो दुनिया अपने नज़रिए से देखता है,
वो सभी को परखने की ताक़त रखता है।
वो पन्नों से दोस्ती रखता है,
वो कलम से अनकही–सी बातें लिखता है,
अब क्या करें जनाब, लेखक है, तो बस लिखता है।

दीक्षा - शिमला (हिमाचल प्रदेश)

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