पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'

पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी' | Hindi Kavita - Ped Ke Saath Chali Gayi Aatma - Prateek Jha
गर्मी का दिन था
एक बूढ़ा आदमी
झोपड़ी में अकेला रहता था
रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद
वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे
थोड़ी देर आराम करता।

यूँ ही
कुछ सुखद वर्ष बीत गए
हालाँकि
बेटे-बहू ने
उसे घर से निकाल दिया था—
फिर भी वह शान्त था
सहनशील और संतुष्ट।

मगर एक दिन
जब वह काम से लौटा
तो जैसे उसकी साँसें थम गईं—
पेड़… अब वहाँ नहीं था।

उसे काट दिया गया था
टहनियाँ ज़मीन पर बिखरी थीं
और वह—
पीड़ा, चिन्ता और निराशा में
पूरी तरह डूब गया।

वही पेड़ था उसका साथी
जिससे वह बातें करता था
जो उसका साया था
उसके साहस और धैर्य का आधार।

अब उसे लगता है—
जैसे केवल टहनियाँ नहीं
बल्कि उसका अपना ही शरीर
काट डाला गया हो।

नष्ट हुआ है
सिर्फ़ एक पेड़ नहीं—
बल्कि उसकी अनुभूतियाँ
उसकी शान्ति
उसका आत्मबल—
सब कुछ चला गया।

अब वह
सिर्फ़ एक मुर्दा शरीर है—
जिसकी आत्मा
पेड़ के साथ ही चली गई।

प्रतीक झा 'ओप्पी' - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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