संदेश
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित - ग़ज़ल - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित अब किसी भी जगह पर मरता नहीं है आदमी बँट गए अब तो स्वयं भगवान कितनी जाति में अब सभी की अर्…
आदमी ज़िंदा है - कविता - संजय राजभर 'समित'
मौन रहना– आमंत्रण है शोषण का द्योतक है कायरता का। कभी-कभी एक ग़ुस्सा है एक गंभीर ज्वालामुखी का फटने पर विनाश। कुछ भी हो दोनों में …
आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ - कविता - विनय विश्वा
मैं कविता लिखता हूँ इसलिए लोग कहते हैं कवि हूँ पर, मैं एक आदमी हूँ आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ जहाँ पर्त खोलने की कोशिशें होती हैं इ…
आम आदमी - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
जिसका पेट भरा हो, उसको क्या फ़र्क़ पड़ताज़ आम आदमी ही, ग़रीबी में मरता। खा जाते है मोटी तोंद वाले, हक़ हमारा, बची खुची से पेट पालता, मरता क…
आदमी को आदमी की अब ज़रूरत नहीं है - ग़ज़ल - एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ऊलुन तक़ती : 2122 2122 2122 122 आदमी को आदमी की अब ज़रूरत नहीं है, मिलने की ज़रा सी किसी को फ़ुर…
आदमी की पहचान - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
आपके सामने मैं भरसक कोशिश करूँगा ईमानदार, होशियार, आपका तलबगार, वफ़ादार आपका ख़ैर-ख़्वाह बना रहूँ। पर शायद आप यह भूल जाते हैं कि मैं ऐसा…
उफ़्फ़ ये आदमी - कविता - मनोज यादव
परंम्परा नई-नई बना रहा है आदमी, असत्य तथ्य सत्य है बता रहा है आदमी। पात्र मात्र भ्रान्ति है कुपात्र ही सर्वत्र है, असत्य की बुनियाद पर…
आदमी होने का सच - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
माना की आज मन हताश है, पर बंजर में भी एक आस है। चला कर तो एक बार देख लो, अपाहिज में चलने की प्यास है। कह कर मुझे मरा क्यों हँसते, यह भ…
बड़ा सवाल - कविता - उमाशंकर राव 'उरेंदु'
मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि जहाँ तुम बचना चाहते हो वहीं नहीं बचोगे यह जाल है जीवन और इससे बचना जीवन नहीं है। जीवन कहाँ-कहाँ है और क…
आदमी - कुण्डलिया छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
बतलाते हैं, आदमी, है संवेदन हीन। पागुर करता मौज में, ख़ूब बजाओ बीन।। ख़ूब बजाओ बीन, नहीं वह कुछ भी सुनता। केवल अपने स्वार्थ, सिद्धि के स…
अतीत का अंश - कविता - विनय "विनम्र"
कल कोई बचपन मरा है तब खडा है आदमी, वक़्त के अहसान में ज़िंदा पड़ा ये आदमी। क़ब्रे मंज़िलें की फ़क़त निर्माण की भट्टी में तप, किस सिलसिले की फ़…
आदमी को आदमी समझा करो - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
आदमी को आदमी समझा करो, नफ़रतों का खेल मत गंदा करो। ज़िंदगी के रूप हैं कितने नये, तुम किसी भी रूप में महका करो। दर्द कोई भी छुपा कर मत रख…
सेवा करो आदमी की - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
एक अजीबो गरीब वाकया है कि कई लोग आँखों के होते हुए भी अन्धे बनते है विवेक के होते हुए लोग चेतना शून्य है जीवन के होते हुए भ…
आदमीयत - कविता - सुधीर कुमार रंजन
मैं आदमी हूँ, मुझे आदमी ही रहने दो। क्यों मुझे बांधना, चाहते हो, अपने जंजीरों में? मत चस्पा करो, अपनी पहचान, मुझ पर, तुम्हार…
काश - कविता - अजय प्रसाद
कभी कभी मैं सोंचता हूँ आसपास जानवरो को देख कर काश ! मैं भी आदमी न हो कर अगर जानवर होता । तो कितना बेहतर होता । न भूत-भविष्य …
आदमी स्वयं से लड़ रहा है - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
महाशक्ति की लालसा ने, कर दिया है बेहाल। समस्त संसार को, मुश्किल में दिया है डाल। साम्राज्य विस्तार ने दुनिया, गर्त में दी है डा…
अकेला आदमी - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"
एक बंजारा रहे अकेला न थी उसको कोई फिकर बस करता था अपना काम न जाने उसको कोई इंसान . कभी - कभी जब सोचे वो क्यों होता है मेरे …
भोला आदमी - कविता - आनन्द कुमार "आनन्दम्"
आदमी तू बड़ा भोला है बात बोले बड़बोला है अच्छाई-बुड़ाई में भेद न जाने आदमी तू बड़ा भोला है. न जाने तू सच्चाई बस कहे उसकी सुनायी …
आदमी - ग़ज़ल - समुन्दर सिंह पंवार
किस सांचे में आदमी ढलता जा रहा है अपना - अपनों को ही छलता जा रहा है क्यों दोष दें हम शहरों को आज यारो गांव का माहौल भी बदलता जा…
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