आदमी ज़िंदा है - कविता - संजय राजभर 'समित'

मौन रहना–
आमंत्रण है शोषण का 
द्योतक है कायरता का।
कभी-कभी 
एक ग़ुस्सा है 
एक गंभीर ज्वालामुखी का 
फटने पर विनाश।

कुछ भी हो 
दोनों में नुक़सान है।

इंसान बनो!
बोलो, लिखो, पढ़ो 
और लड़ो 
यही जीवटता है
आदमी ज़िंदा है। 

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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