आदमी - कुण्डलिया छंद - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"

बतलाते हैं, आदमी, है संवेदन हीन।
पागुर करता मौज में, ख़ूब बजाओ बीन।।
ख़ूब बजाओ बीन, नहीं वह कुछ भी सुनता।
केवल अपने स्वार्थ, सिद्धि के सपने बुनता।।
कह 'कोमल' कविराय, स्वार्थ के रिस्ते-नाते।
जिससे निकले काम, ख़ास रिस्ता बतलाते।।

बदल गया है आदमी, बदल गया है देश।
बदला-बदला लग रहा, यह पूरा परिवेश।।
यह पूरा परिवेश, एक साँसों को तरसे।
ऑक्सीजन को बेच, एक पर सोना बरसे।।
कह 'कोमल' कविराय, स्वार्थ सब निगल गया है।
लगता अपना देश, आज कल बदल गया है।।

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल" - लहार, भिण्ड (मध्य प्रदेश)

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