अतीत का अंश - कविता - विनय "विनम्र"

कल कोई बचपन मरा है
तब खडा है आदमी,
वक़्त के अहसान में
ज़िंदा पड़ा ये आदमी।

क़ब्रे मंज़िलें की फ़क़त
निर्माण की भट्टी में तप,
किस सिलसिले की फ़िक्र में
किसने गढा ये आदमी।

दर्द, सोहरत आँसुओं के
बारिशों में भींगता,
सदियों से लेकर अब तलक
क्यों चलता रहा ये आदमी?

धर्म का ओढे कफ़न
और कर्म की चादर लिये,
जज़्बात की इन आँधियों में
ढलता रहा ये आदमी।

सत्य की इसे फ़िक्र है
पर झूठ की इसको ज़रुरत,
पेट की भीषण तपन में
जलता रहा ये आदमी।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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