जिसका पेट भरा हो, उसको क्या फ़र्क़ पड़ताज़
आम आदमी ही, ग़रीबी में मरता।
खा जाते है मोटी तोंद वाले, हक़ हमारा,
बची खुची से पेट पालता, मरता क्या न करता।।
शब्दों से नहीं भरता, खाली पेट किसी का,
जिसकी लाठी उसकी भैंस, थाली प्लेट उसी का।
रह जाते भूखे फिर भी, खाकर गस्सा मेरा,
बची खुची से पेट पालता, मरता क्या न करता।।
करो न पीड़ित उसको, आम नहीं अब वो ख़ास है,
बढ़ जाएगा आगे एक दिन, सबको विश्वास है।
जान लिया पहचान लिया, उसने अपने हक़ को,
बची खुची से पेट पालता, अब न किसी से हारता।।
महेन्द्र 'अटकलपच्चू' - ललितपुर (उत्तर प्रदेश)