बड़ा सवाल - कविता - उमाशंकर राव 'उरेंदु'

मैं तुमसे कहना चाहता हूँ 
कि जहाँ तुम बचना चाहते हो
वहीं नहीं बचोगे 
यह जाल है जीवन
और इससे बचना जीवन नहीं है।

जीवन कहाँ-कहाँ है 
और कहाँ-कहाँ नहीं 
यह बताना कठिन है
सच तो यह है 
कि लोग भौतिकता में ख़ुश हैं
जीवन देखकर मदांध हैं
जहाँ न प्रेम है, न संबंध की मिठास
ढूँढे तो वहाँ आपको जीवन का एक खाली लिफ़ाफ़ा सा मिलेगा जीवन।

आप क्यों बचना चाहते हैं? 
किससे बचना है?
क्या बचाना है?
जिसे आप मनुष्य समझ रहे हैं 
वह हैं नहीं 
जिसे आप उपदेश समझते हैं 
वह हैं नहीं 
तब आपके बचने का मतलब
अपने अंदर के आदमीपन को बचाकर रखना है शायद 
सवाल उठता है 
कि आदमी ही नहीं मिलता 
तो आदमीयत कैसे मिलेगी
कैसे बचेगी वह?
हम उपदेशक इसलिए हैं 
कि बाबा का यह काम है 
और वह ख़ुश रहेंगे 
हम जातिवाद का विरोध इसलिए 
कर रहे हैं 
कि हम ख़ुद सबसे बड़े जातिवादी हैं,
अपनी जाति की श्रेष्ठता पर नाज़ हैं उन्हें 
राजनीति से अलग होने का ढोंग
बड़े राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण है 
आज कैसे ढूँढेंगे आदमी आप?
यह एक बड़ा सवाल है।

उमाशंकर राव 'उरेंदु' - देवघर बैद्यनाथधाम (झारखंड)

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