एक बंजारा रहे अकेला
न थी उसको कोई फिकर
बस करता था अपना काम
न जाने उसको कोई इंसान .
कभी - कभी जब सोचे वो
क्यों होता है मेरे साथ
कभी किसी का गलत न सोचे
फिर भी लोग है उसको कोसे .
एक समय ऐसा आया
समझ गये वें सारी बाते
फिर रोया और हँस के बोला
ये है अपना प्यारा भाई .
आनन्द कुमार "आनन्दम्"कुशहर शिवहर (बिहार)