अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ऊलुन
तक़ती : 2122 2122 2122 122
आदमी को आदमी की अब ज़रूरत नहीं है,
मिलने की ज़रा सी किसी को फ़ुर्सत नहीं है।
कितनी सीमित सी हो गई है दुनिया हमारी,
सोचे हम जितना उतनी तो ख़ूबसूरत नहीं है।
काम से काम, दिखावा, बस यही सब शेष है,
बेजान रिश्तो मे चाह की अब हसरत नहीं है।
पास से गुज़र के भी लोग नज़र नही मिलाते,
मौक़ापरस्त लोगो की अच्छी शरारत नहीं है।
बदलना तो हमको ही होगा मुहब्बत के लिए,
बदलना चाहे अगर तो बड़ी ये कसरत नहीं है।
कोई लाख हम से अदावत रखे ‛जैदि’ मगर,
हम चोट पहुँचाए ऐसी हमारी फ़ितरत नहीं है।
एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि' - बीकानेर (राजस्थान)